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    [REVIEW] Mr Bengali (2025)

    KavyaBy Kavyaदिसम्बर 13, 2025कोई टिप्पणी नहीं6 Mins Read
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    [REVIEW] Mr. Bengali (2025) – An Elegy of an Intellectual Amidst the Flow of Urbanization

    Rating: ★★★★½ (4.5/5) – “A tearful satirical masterpiece about the collapse of the old intelligentsia.”

    कोलकाता, आनंद का शहर (City of Joy), या Mr. Bengali (2025) में सही कहें तो, भूतों का शहर। खंडहर होती हवेलियों में छिपे भूतों का नहीं, बल्कि संस्कृति का, भाषा का और एक मरती हुई जीवन शैली के भूतों का। निर्देशक परमब्रत चटर्जी, जिन्होंने अपना पूरा करियर बंगाल की आत्मा को खोजने में लगा दिया है, एक ऐसी फिल्म लेकर आए हैं जो उस्तरे (razor) की तरह तेज है, और Rabindra Sangeet (रवींद्र संगीत) की तरह कोमल भी। यह फिल्म केवल एक व्यक्ति का चित्र नहीं है, बल्कि एक बीते हुए रोमांटिक युग का शोक संदेश (obituary) है।

    🎬 Film Metadata

    • Film Title: Mr. Bengali (मिस्टर बंगाली)

    • Director: Parambrata Chatterjee

    • Lead Cast: Prosenjit Chatterjee (Avinash Mukherjee), Anirban Bhattacharya (The Son), Paoli Dam (The Muse of the Past).

    • Genre: Satirical Drama / Character Study / Psychological Melodrama

    • Production: SVF Entertainment & Roadshow Films

    • Release Year: 2025

    • Runtime: 152 Minutes

    • Language: Malayalam

    • Cinematography (DoP): Sudeep Chatterjee

    • Music: Anupam Roy & Debojyoti Mishra

    Plot: The Battle of Don Quixote of Bengal

    अविनाश मुखर्जी (Prosenjit Chatterjee), मुख्य पात्र जिसे व्यंग्यात्मक रूप से “Mr. Bengali” कहा जाता है, अंतिम Bhadralok (भद्रलोक – सज्जन बुद्धिजीवी वर्ग) का जीवंत अवतार है। वह उत्तरी कोलकाता की एक हवेली में रहता है जिसका पेंट उखड़ रहा है। वह स्मार्टफोन का उपयोग करने से इनकार करता है, केवल शुद्ध बंगाली बोलता है और चाय को गलत तरीके से बनाना एक गंभीर अपराध मानता है।

    फिल्म का संघर्ष बड़ी घटनाओं से नहीं, बल्कि क्षरण (erosion) से आता है। उसका बेटा, सिलिकॉन वैली के लिए काम करने वाला एक आईटी इंजीनियर, घर बेचकर एक आलीशान अपार्टमेंट खरीदना चाहता है। अविनाश की घर बचाने की लड़ाई अपनी पहचान बचाने की लड़ाई बन जाती है। पटकथा (screenplay) शानदार है क्योंकि यह अविनाश को शहीद नहीं बनाती; वह जिद्दी है, अभिमानी है, और कभी-कभी इतना दंभी कि नफरत होने लगे। लेकिन यही खामियां उसकी त्रासदी (tragedy) बनाती हैं।

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    Character Analysis: The Collapse of a Monument

    Prosenjit Chatterjee – Performance of a Lifetime:

    मैं प्रसेनजीत को 90 के दशक की उनकी व्यावसायिक फिल्मों के दिनों से देख रहा हूँ, लेकिन Mr. Bengali के साथ, उन्होंने वास्तव में अभिनय की सबसे गहरी परत को छुआ है। उनका अविनाश एम्बर (amber) में फंसा हुआ एक व्यक्ति है।

    • The Gaze (नज़र): उस दृश्य में जब अविनाश एक आधुनिक कैफे में प्रवेश करते हैं, जहाँ युवा टूटी-फूटी “Benglish” (बंगाली मिश्रित अंग्रेजी) बोलते हैं, प्रसेनजीत कुछ नहीं बोलते। वह बस देखते हैं। उस नज़र में तिरस्कार, अलगाव और गहरा डर है। यह एक चिड़ियाघर बन चुके जंगल को देखकर एक बूढ़े शेर की नज़र है।

    • Body Language: उनका पाइप पकड़ने का तरीका, उनके Kurta की सिलवटों को ठीक करने का तरीका, सब कुछ समय के खिलाफ एक कमजोर प्रतिरोध को दर्शाता है।

    Anirban Bhattacharya (The Son): व्यावहारिक प्रतिसंतुलन (counterweight) की भूमिका निभाते हैं। वह खलनायक नहीं है। वह अपरिहार्य विकास का प्रतिनिधित्व करता है। अपने पिता के लिए प्यार और एक “जीवित अवशेष” के साथ रहने की घुटन के बीच अनिर्बान की कशमकश को दबी हुई आहों के माध्यम से सूक्ष्मता से दिखाया गया है।

    Cinematic Language: A Fading Oil Painting

    DoP सुदीप चटर्जी ने पुरानी यादों से भरे रंग पैलेट (color palette) का उपयोग किया है, लेकिन यह बिल्कुल भी बनावटी (cheesy) नहीं है।

    • Lighting (Chiaroscuro): फिल्म प्राकृतिक प्रकाश का कुशलता से उपयोग करती है। अविनाश की हवेली में, रोशनी हमेशा लकड़ी की खिड़कियों (khirki) से छनकर आती है, हवा में तैरते धूल के कणों को रोशन करती है। यह महसूस कराता है कि यहाँ समय जम गया है। इसके विपरीत, बाहरी दुनिया नीयन लाल और नीली रोशनी के साथ कठोर और चमकदार है, जो आधुनिकता की क्रूर घुसपैठ का प्रतीक है।

    • Framing: अविनाश को अक्सर फ्रेम के केंद्र (Center framing) में रखा जाता है, लेकिन उनके चारों ओर बड़ी खाली जगहें या पुरानी वस्तुएं होती हैं जो उन पर हावी होती हैं। यह उनके अकेलेपन और अतीत द्वारा निगले जाने पर जोर देता है।

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    Pacing & Editing

    Mr. Bengali की गति (Pacing) कॉलेज स्ट्रीट से गुजरने वाली एक पुरानी ट्राम की तरह धीमी है। निर्देशक परमब्रत को कोई जल्दी नहीं है। वह मिट्टी के कुल्हड़ वाली चाय के साथ Adda (बंगाली बौद्धिक बहस) के लिए समय देते हैं।

    हालाँकि, संपादन (Editing) दर्दनाक विरोधाभास (Juxtaposition) पैदा करता है। अविनाश के टैगोर की कविता पढ़ने के दृश्य को अचानक ट्रैफिक के शोर और कंक्रीट ड्रिलिंग मशीन की आवाज़ के साथ काट दिया जाता है। संपादन में यह दरार पात्र की आत्मा में दरार है।

    Music: The Soul of the Work

    फिल्म का संगीत केवल बैकग्राउंड नहीं है; यह एक पात्र है। परिचित Rabindra Sangeet को उदास सेलो (Cello) के साथ फिर से व्यवस्थित (re-arranged) किया गया है, जो एक मूक रोने की तरह लगता है।

    विशेष रूप से, Diegetic sound (परिवेशीय ध्वनि) का उपयोग उत्कृष्ट है। पन्ने पलटने की सरसराहट, छत पर गिरती बारिश, पानी उबलने की आवाज़… ये सब एक गर्म Soundscape बनाते हैं, जो बाहर के शहर के अराजक शोर के विपरीत है।

    Artistic Value: Identity or Burden?

    Mr. Bengali (2025) एक चुभने वाला सवाल पूछता है: आगे बढ़ने के लिए हमें क्या कीमत चुकानी होगी?

    फिल्म गरीबी या पिछड़ेपन का महिमामंडन नहीं करती, लेकिन यह एक ऐसी “Flat World” (सपाट दुनिया) के बारे में चेतावनी देती है जहां सभी सांस्कृतिक पहचानों को एक जैसी कांच की इमारतों में बदल दिया जाता है। अविनाश शेक्सपियर की त्रासदी जैसा पात्र है: उसकी सबसे बड़ी गलती गलत सदी में पैदा होना है।

    फिल्म एक अतियथार्थवादी अनुक्रम (Surrealism sequence) के साथ समाप्त होती है जब अविनाश दुर्गा पूजा उत्सव में खो जाता है। ईडीएम (EDM) संगीत पर पागलों की तरह नाचती भीड़ के बीच, वह देवी दुर्गा को अपनी दिवंगत पत्नी के चेहरे के साथ देखता है। क्या वह मुक्ति का क्षण है, या पागलपन का? निर्देशक जवाब दर्शकों पर छोड़ देते हैं।

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    Conclusion

    Mr. Bengali फीकी पड़ चुकी बैंगनी स्याही से कोलकाता को लिखा गया एक प्रेम पत्र है। यह सुंदर है, उदास है और गरिमा से भरा है। प्रसेनजीत चटर्जी के जीवन के सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन और सूक्ष्म सिनेमाई सोच के साथ, यह निश्चित रूप से इस वर्ष फिल्म समारोहों में सर्वश्रेष्ठ अंतर्राष्ट्रीय फिल्म के लिए एक प्रबल दावेदार है। एक ऐसी रचना जो हमें याद दिलाती है कि: संस्कृति इसलिए नहीं मरती क्योंकि उसे मार दिया जाता है, वह इसलिए मरती है क्योंकि अब कोई उसे प्यार करना याद नहीं रखता।

    The Money Shot: वह दृश्य जहाँ अविनाश बालकनी पर खड़े होकर अपनी किताबों को ले जा रहे ट्रक को रद्दी के रूप में बिकते हुए देखते हैं। कैमरा उनके कांपते हुए हाथ पर Extreme Close-up करता है जो पाइप जलाने की कोशिश कर रहा है लेकिन जला नहीं पाता। लौ बुझ जाती है, ठीक वैसे ही जैसे एक युग बुझ जाता है।

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    Kavya

    मैं एक फ़िल्म संपादक और समीक्षक हूँ, जिसे 5 वर्षों का अनुभव है। मेरा कार्य फ़िल्मों के चरित्र-मनोविज्ञान, सिनेमैटोग्राफी, कहानी की संरचना, संपादन की गति और कलात्मक मूल्यों का गहन विश्लेषण करना है। मैं हमेशा निष्पक्ष, सूक्ष्म और भावनात्मक दृष्टिकोण के साथ लेखन करता हूँ, ताकि पाठक सिनेमा को केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि एक कला के रूप में समझ सकें।

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