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    Marathi Movies

    [REVIEW] Jilabi (2025)

    KavyaBy Kavyaदिसम्बर 13, 2025Updated:दिसम्बर 13, 2025कोई टिप्पणी नहीं6 Mins Read
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    [REVIEW] Jilabi (2025) – The Sweet Spirals and Chaos of Destiny

    Rating: ★★★★☆ (4/5) – “A Street Ballad full of Flavor and

    Contemplation.”कान (Cannes) से लेकर मुंबई तक के सिनेमाघरों की अगली कतार में बैठकर बिताए गए 15 वर्षों में, मुझे शायद ही कभी ऐसी फिल्म मिली हो जिसने अपने शीर्षक के लिए एक स्ट्रीट फूड का नाम रखने की हिम्मत की हो, और फिर भी उसमें Jilabi (2025) जितना दार्शनिक वजन (philosophical weight) हो। उसी नाम की मिठाई की तरह – चाशनी में डूबे हुए मैदा के उलझे हुए छल्ले – यह फिल्म एक अव्यवस्थित, चिपचिपी संरचना है, लेकिन जब आप इसे अंत तक चखते हैं, तो जो स्वाद रह जाता है वह मानवता की मिठास है। निर्देशक अरुण शेखर ने केवल एक साधारण कॉमेडी फिल्म नहीं बनाई है; उन्होंने केरल के हरे-भरे परिदृश्य के बीच मानवीय अपूर्णता (human imperfection) का एक ऑयल पेंटिंग जैसा चित्र उकेरा है।

    🎬 Film Metadata

    • Film Title: Jilabi (Jilebi)

    • Director: Arun Shekhar

    • Lead Cast: Jayasurya, Minon, Gourav Menon.

    • Genre: Road Movie / Comedy-Drama / Slice of Life

    • Production: Friday Film House

    • Release Year: 2025

    • Runtime: 135 Minutes

    • Language: Marathi

    • Cinematography (DoP): Madhu Neelakandan

    • Music: Bijibal

    Narrative Structure: The Journey of the Lost

    भारतीय सिनेमा, विशेष रूप से केरल की नई लहर (Mollywood), अब ‘Mass Masala’ (शोर-शराबे वाली व्यावसायिक फिल्में) की पटकथाओं से दूर जाकर रोजमर्रा की कहानियों (Hyper-realism) की ओर बढ़ रही है। Jilabi 2025 में इस प्रवृत्ति का शिखर है।

    कहानी सरल लगती है: एक अधेड़ उम्र का दोषपूर्ण व्यक्ति (Jayasurya), जिसे शहर के दो जिद्दी बच्चों के साथ अपने गांव जाने के लिए एक अनिच्छुक यात्रा करनी पड़ती है। लेकिन Jilabi की खूबसूरती मंजिल में नहीं, बल्कि रास्ते के “मोड़ों” (curves) में है। पटकथा (screenplay) जलेबी के छल्लों की तरह लिखी गई है: पात्रों को लगता है कि वे आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन वास्तव में वे अपने पुराने घावों के इर्द-गिर्द घूम रहे होते हैं, और बाहर निकलने का रास्ता खोजने के लिए उन्हें अपने अहंकार (ego) का सामना करना पड़ता है।

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    Character Analysis: Generational Conflict

    Jayasurya ने एक बार फिर साबित कर दिया कि वे दक्षिण भारतीय सिनेमा के “गिरगिट” (chameleon) क्यों हैं। वह एक अच्छे चाचा की भूमिका नहीं निभाते। उनका पात्र बुरी आदतों से भरा है: आलसी, छोटे-मोटे झूठ बोलने वाला और जिम्मेदारी से भागने वाला।

    • Acting Technique: मुन्नार के चाय के बागानों के बीच पुरानी जीप खराब होने वाले दृश्य में, जयसूर्या चिल्लाते नहीं हैं। वे “Micro-acting” (सूक्ष्म अभिनय) का उपयोग करते हैं: एक बेबस मुस्कान, झुके हुए कंधे, और बच्चों द्वारा सवाल पूछे जाने पर नजरें चुराना। यह एक ऐसे वयस्क का चित्र है जो बड़ा तो हो गया है लेकिन अंदर से अभी भी एक बच्चा है।

    इसके विपरीत, शहरी बच्चों की भूमिका निभाने वाले बाल कलाकार तकनीक (technology) की व्यवस्था, तर्क और शीतलता का प्रतिनिधित्व करते हैं। “ग्रामीण अराजकता” और “शहरी व्यवस्था” के बीच की टक्कर दिलचस्प मनोवैज्ञानिक चिंगारी पैदा करती है। वे एक-दूसरे से नफरत नहीं करते, उन्होंने बस एक-दूसरे के जीवन को “चखना” नहीं सीखा है।

    Visual Language: A Visual Feast of Colors

    DoP (Director of Photography) मधु नीलंदन ने केरल को फिल्म के चौथे पात्र में बदल दिया है।

    • Color Palette: फिल्म दो विपरीत रंगों का उपयोग करती है। फिल्म की शुरुआत में शहरी दुनिया नीले (Blue/Teal) और स्टील ग्रे टोन के साथ ठंडी और दूर की लगती है। जैसे ही यात्रा शुरू होती है, स्क्रीन उष्णकटिबंधीय जंगल के हरे (Green) और शाम की धूप के एम्बर (Amber) रंग – जलेबी के रंग – से भर जाती है।

    • Camera Technique: प्रकृति के दृश्यों में ‘Wide Lens’ का उपयोग और जीप के अंदर के दृश्यों में दम घोंटने वाले ‘Close-up’ शॉट्स, विशाल प्रकृति के बीच भी Claustrophobic (बंद जगह का डर) प्रभाव पैदा करते हैं। यह इस बात का रूपक (metaphor) है कि बाहरी दुनिया कितनी भी विशाल क्यों न हो, पात्र अपने ही पूर्वाग्रहों में कैद हैं।

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    Lighting: The Waltz of Sun and Shadow

    Jilabi में रोशनी केवल दृश्य को चमकाने के लिए नहीं है, यह कहानी कहने के लिए है। सड़क किनारे के ढाबे पर तीनों पात्रों के खाना खाने वाले “Golden Hour” (स्वर्णिम घंटे) के दृश्य पर ध्यान दें। तिरछी रोशनी (Rim light) उनके बिखरे बालों को रेखांकित करती है, जिससे एक साधारण भोजन एक पवित्र झांकी (sacred tableau) में बदल जाता है। निर्देशक कहना चाहते हैं: धूल में सने पलों में ही इंसान वास्तव में चमकते हैं।

    Music & Pacing: An Impromptu Jazz

    यदि दृश्य शरीर हैं, तो बिजीबल का संगीत आत्मा है। किसी भी अर्थहीन डांस नंबर (item songs) का उपयोग न करते हुए, फिल्म का संगीत बांसुरी और तत्काल रचे गए जैज़ (Jazz) का मिश्रण है।

    • Pacing: फिल्म की गति “Stop-and-Go” (रुको और चलो) है। जब गाड़ी चल रही होती है, तो कट तेज़ और आक्रामक होते हैं, जो भागने का प्रतीक हैं। लेकिन जब गाड़ी खराब होती है, या पात्र फंस जाते हैं, तो गति इतनी धीमी हो जाती है कि लगभग स्थिर हो जाती है। गति का यह बदलाव दर्शकों को पात्रों के साथ “सांस” लेने, उनकी हताशा और फिर स्वीकृति को महसूस करने के लिए मजबूर करता है।

    Artistic Value: The Beauty of Imperfection (Wabi-Sabi)

    Jilabi (2025) का मूल मूल्य Wabi-Sabi (अपूर्णता के सौंदर्य) के दर्शन में निहित है। जीवन एक सीधी रेखा की तरह नहीं है; यह जलेबी की तरह मुड़ा हुआ, गन्दा और कभी-कभी चाशनी की तरह चिपचिपा होता है। फिल्म अंत में पात्रों की सभी समस्याओं को हल करने की कोशिश नहीं करती। गाड़ी अभी भी पुरानी है, चाचा अभी भी अमीर नहीं हुए हैं, बच्चों को अभी भी शहर वापस जाना है। लेकिन एक-दूसरे को देखने का उनका नज़रिया बदल गया है।

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    निर्देशक अरुण शेखर ने एक शक्तिशाली संदेश दिया है: जलेबी को सुलझाने की कोशिश मत करो, उस उलझन के बीच ही उसकी मिठास का आनंद लो।

    Conclusion

    Jilabi (2025) स्वादों से भरपूर एक सिनेमाई कृति है, जो उन आत्माओं के लिए एक मरहम है जो पूर्णता (perfection) के दबाव से थक चुकी हैं। यह एक्शन ब्लॉकबस्टर की तरह शोर नहीं मचाती, लेकिन भावनाओं पर इसका प्रभाव किसी भी विस्फोट से ज्यादा शक्तिशाली है। एक ऐसी फिल्म जो हमें धीमा होने और कभी-कभी, खुद को रास्ता भटकने की अनुमति देने की याद दिलाती है।

    Most Memorable Scene: वह दृश्य जहाँ चाचा बच्चों को नंगे हाथों से जलेबी खाना सिखाते हैं, उंगलियों से चाशनी चाटते हैं, और उनकी स्वच्छता के सभी नियमों को तोड़ देते हैं। वह क्षण है जब उनके बीच की दीवार पूरी तरह से ढह जाती ह

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    Kavya

    मैं एक फ़िल्म संपादक और समीक्षक हूँ, जिसे 5 वर्षों का अनुभव है। मेरा कार्य फ़िल्मों के चरित्र-मनोविज्ञान, सिनेमैटोग्राफी, कहानी की संरचना, संपादन की गति और कलात्मक मूल्यों का गहन विश्लेषण करना है। मैं हमेशा निष्पक्ष, सूक्ष्म और भावनात्मक दृष्टिकोण के साथ लेखन करता हूँ, ताकि पाठक सिनेमा को केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि एक कला के रूप में समझ सकें।

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