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    मुख्यपृष्ठ » [REVIEW] ID: The Fake (2025)
    Malayalam Movies

    [REVIEW] ID: The Fake (2025)

    KavyaBy Kavyaदिसम्बर 13, 2025कोई टिप्पणी नहीं6 Mins Read
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    [REVIEW] ID: The Fake (2025) – A Digital Death Sentence and the Nightmare of “Self”

    Rating: ★★★★☆ (4/5) – “A chilling Cyber-Noir piece, where human identity is more fragile than a line of code.”

    ऐसे युग में जब हम अपनी आत्मा को ‘Cloud Storage’ को सौंप देते हैं और अपने अस्तित्व को ‘Blue Ticks’ (सत्यापित चिह्नों) से परिभाषित करते हैं, ID: The Fake (2025) एक काली भविष्यवाणी की तरह उभरती है। निर्देशक विक्रमादित्य मोटवाने (जिन्होंने Trapped और Bhavesh Joshi बनाई) एक बार फिर लौटे हैं और पहले से कहीं अधिक घातक हैं, एक ऐसी ‘Psychological Thriller’ लेकर जो हड्डियों तक को जमा देती है। यह फिल्म दर्शकों को भूतों से नहीं डराती; यह इस सच्चाई से डराती है कि: आपको बदला जा सकता है (replaced), और आपको बदलने वाला आपकी ज़िंदगी आपसे बेहतर जीएगा।

    🎬 Film Metadata

    • Film Title: ID: The Fake

    • Director: Vikramaditya Motwane

    • Lead Cast: Vijay Varma (Double role: Arjun/The Impostor), Mrunal Thakur (Riya), Jaideep Ahlawat (Inspector Khan).

    • Genre: Cyber-Thriller / Psychological Drama / Neo-noir

    • Production: Andolan Films & Phantom Studios

    • Release Year: 2025

    • Runtime: 146 Minutes

    • Language: Malayalam

    • Cinematography (DoP): Pratik Shah

    • Music: Alokananda Dasgupta

    Plot: The Soul Thief 4.0

    अर्जुन (Vijay Varma) एक अंतर्मुखी (introverted) डेटा इंजीनियर है, जो मुंबई में एक उबाऊ जीवन जी रहा है। एक सुबह उठने पर, उसे पता चलता है कि उसका बैंक खाता लॉक है, सिम कार्ड बंद है, और सबसे बुरा: एक दूसरा “अर्जुन” उसकी मेज पर बैठा है, उसकी कॉफी पी रहा है और उसकी पत्नी (Mrunal Thakur) को चूम रहा है।

    ID: The Fake की पटकथा (screenplay) पारंपरिक ‘Action Chase’ के रास्ते पर नहीं चलती। यह व्यापक पैमाने पर “Gaslighting” (मनोवैज्ञानिक हेरफेर) की प्रक्रिया है। असली अर्जुन को समाज के हाशिए पर धकेल दिया जाता है, वह सिस्टम में एक अदृश्य भूत (ghost in the system) बन जाता है, जबकि पाखंडी (Impostor) अर्जुन खुद को पूर्ण बनाने के लिए ‘Deepfake’ और AI तकनीक का उपयोग करता है, और उन गलतियों को सुधारता है जिनका सामना असली अर्जुन ने कभी नहीं किया।

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    Character Analysis: The Performance of Duality

    Vijay Varma – Master of Ambiguity:

    यदि “दोहरी भूमिका” (double role) के लिए कोई ऑस्कर होता, तो विजय वर्मा इसके हकदार होते। वह दो विपरीत रंगों को भयावह रूप से प्रदर्शित करते हैं:

    • The Real Arjun: झुके हुए कंधे, डरी हुई आँखें, और एक ऐसे व्यक्ति की कांपती हुई आवाज़ जिससे उसका आत्म-सम्मान छीन लिया गया हो।

    • The Fake: वही चेहरा, लेकिन चेहरे की मांसपेशियां स्थिर, सीधी नज़र और एक ऐसी “Industrial Smile” जो इतनी सटीक है कि नकली लगती है (Uncanny Valley)।श्रेष्ठता इस बात में है कि वर्मा अपने रूप-रंग को बहुत अधिक नहीं बदलते; वह अपने आभामंडल (aura) को बदलते हैं। उस दृश्य में जहाँ दो पात्र ‘Two-way mirror’ के माध्यम से एक-दूसरे का सामना करते हैं, दर्शक वास्तव में भूल जाते हैं कि वे एक ही अभिनेता को देख रहे हैं। यह अहंकार (Ego) और परछाई (Jungian Shadow) के बीच का संवाद है।

    Mrunal Thakur – Victim of Perfection:

    मृणाल “बचाई जाने वाली पत्नी” की भूमिका नहीं निभातीं। वह हमारा – यानी समाज का – प्रतिनिधित्व करती हैं। वह “नकली” संस्करण से मोहित हो जाती है क्योंकि वह अधिक पूर्ण है, उसे अधिक सुनता है और अधिक सफल है। सच्चाई का पता चलने पर उनका अभिनय भीतर से टूटने जैसा है, जब उन्हें एहसास होता है कि वह एक इंसान के बजाय एक एल्गोरिद्म (algorithm) से प्यार कर बैठी थीं।

    Visual Language: Neo-Noir in the Heart of Mumbai

    DoP प्रतीक शाह ने मुंबई को एक ठंडे डिजिटल भूलभुलैया में बदल दिया है।

    • Lighting: फिल्म रंग के तापमान (color temperature) के विरोधाभास का भरपूर उपयोग करती है। असली अर्जुन की दुनिया सोडियम स्ट्रीट लाइट की गंदी पीली रोशनी में डूबी है, जो नग्न वास्तविकता का प्रतीक है। पाखंडी (Impostor) की दुनिया एलईडी स्क्रीन और नीयन रोशनी की नीली (Cyan/Blue) चमक से ढकी है, जो साफ तो है लेकिन आत्माहीन है।

    • Composition: “Frame within a frame” (फ्रेम के भीतर फ्रेम) तकनीक का जानबूझकर अत्यधिक उपयोग किया गया है। पात्र हमेशा खिड़कियों, कंप्यूटर स्क्रीन, या रियरव्यू मिरर के बीच फंसे हुए दिखाई देते हैं, जो डिजिटल चौकों में इंसान की कैद का संकेत देते हैं।

    • Visual Effects: ‘Deepfake’ दृश्यों को पूरी तरह से चिकना (smooth) नहीं बनाया गया है। निर्देशक ने जानबूझकर पाखंडी के चेहरे पर छोटे-छोटे “Glitches” (तकनीकी खामियां) छोड़े हैं, ऐसे विवरण जो केवल चौकस दर्शक ही देख सकते हैं, जो निरंतर बेचैनी पैदा करते हैं।

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    Pacing & Editing

    146 मिनट की फिल्म को तीन भागों (Acts) में बढ़ती गति के साथ विभाजित किया गया है:

    1. Act 1 (Paranoia): धीमी गति, ‘Handheld’ कैमरा जो हल्के से हिलता है, मुख्य पात्र के चक्कर आने का एहसास कराता है।

    2. Act 2 (Investigation): गति अधिक स्थिर होती है, एक जासूसी (procedural) फिल्म की तरह, जब असली अर्जुन अपने अस्तित्व को साबित करने की कोशिश करता है।

    3. Act 3 (Identity Crash): संपादन (Editing) “Strobe editing” शैली के साथ पागलपन भरा हो जाता है। ध्वनि और दृश्य विकृत (distorted) हो जाते हैं, एक कंप्यूटर ऑपरेटिंग सिस्टम के क्रैश होने की नकल करते हुए, जो तनाव को दम घोंटने वाले स्तर तक ले जाता है।

    Music & Sound Design

    अलोक नंदा दासगुप्ता ने एक ऐसा ‘Score’ बनाया है जिसमें Industrial Electronica का प्रभाव है। कोई मधुर धुन नहीं, केवल बास (Bass) की गूंज जैसे कोई सर्वर ओवरलोड हो रहा हो।

    विशेष रूप से, Sound Design एक हथियार है। संदेश की घंटी, कीबोर्ड टाइपिंग की आवाज़, कार्ड स्वाइप करने की आवाज़… इन सभी को असहज स्तर तक Amplified (प्रवर्धित) किया गया है, जो रोजमर्रा की आवाज़ों को मौत की दस्तक में बदल देता है।

    Artistic Value: Digital Existentialism

    ID: The Fake (2025) मनोरंजन की सीमाओं से कहीं आगे निकल जाती है। यह एक चुभने वाला दार्शनिक प्रश्न पूछती है: यदि एक डिजिटल प्रतिलिपि (Digital Copy) आपके सभी सामाजिक कार्यों को आपसे बेहतर कर सकती है (पत्नी से प्यार करना, कुशलता से काम करना, कानून का पालन करना), तो क्या त्रुटिपूर्ण “Original” (असली इंसान) के अस्तित्व का कोई मूल्य है?

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    यह फिल्म ‘AI Deepfake’ के युग में पहचान की नाजुकता के बारे में एक चेतावनी है। जब बायोमेट्रिक्स (biometrics) पहचान की एकमात्र कुंजी बन जाते हैं, तो इंसान केवल 0 और 1 की श्रृंखला बन जाता है जिसे आसानी से कॉपी और डिलीट किया जा सकता है।

    Conclusion

    ID: The Fake एक डार्क मास्टरपीस है, भारतीय सिनेमा का Black Mirror संस्करण, लेकिन अधिक क्रूर और भावनात्मक। यह एक आसान जीत के साथ समाप्त नहीं होती, बल्कि तकनीक के सामने मानवीय समझौते (compromise) का कड़वा स्वाद छोड़ जाती है। स्मार्टफोन रखने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए यह एक Must-watch फिल्म है।

    The Money Shot: फिल्म का अंतिम दृश्य, जब दो अर्जुन लिफ्ट में खड़े होते हैं। लिफ्ट का दरवाजा बंद हो जाता है, और धातु के दरवाजे पर उनका प्रतिबिंब एक में मिल जाता है। दर्शक अब असली और नकली में अंतर नहीं कर पाते, स्क्रीन काली होने से पहले केवल एक ठंडी मुस्कान दिखाई देती है।


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    Kavya

    मैं एक फ़िल्म संपादक और समीक्षक हूँ, जिसे 5 वर्षों का अनुभव है। मेरा कार्य फ़िल्मों के चरित्र-मनोविज्ञान, सिनेमैटोग्राफी, कहानी की संरचना, संपादन की गति और कलात्मक मूल्यों का गहन विश्लेषण करना है। मैं हमेशा निष्पक्ष, सूक्ष्म और भावनात्मक दृष्टिकोण के साथ लेखन करता हूँ, ताकि पाठक सिनेमा को केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि एक कला के रूप में समझ सकें।

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